केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामला Kesavananda bharti case vs state of kerala
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य- Kesavananda bharti case vs state of kerala |
केशवानंद भारती मामले का इतिहास - Kesavananda bharti case history
वह धर्मगुरु जिसने 79 वर्ष की आयु में अपने प्राण त्याग दिए और अपनी बाजी हारकर भी लोगों के लिए बाजीगर बन गए कि केशवानंद भारती केरल के सबसे उत्तरी जिले जिसका नाम है कसारागोड के एक प्रसिद्ध मठ एडनीर मठ के शंकराचार्य थे कसारागोड केरल का सबसे उत्तरी जिला है जो समुद्री तट , कर्नाटक के बागो आदि प्राकृतिक वातावरण में वसा है
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दरअसल यह मठ लगभग 9 वी सदी में आदि कवि शंकराचार्य से संबंधित यह मठ की भूमिका प्राचीनतम होने के साथ-साथ प्राचीनतम को नवीनतम से जोड़ने वाली भी है लगभग 1200 वर्ष पुराना यह मठ का निर्माण जगतगुरु शंकराचार्य की प्रमुख सर्वप्रथम चार शिष्यों में से एक के द्वारा बनवाया गया था यह एक सर्वश्रेष्ठ मठ है
उपरोक्त में प्राचीनतम को नवीनतम से जोड़ने का अर्थ यह है कि यहां नवीनतम केसवानंद भारती जिन्हें मठ के प्रमुख होने के नाते केरल के शंकराचार्य के नाम से भी जाना जाता है किंतु हमारे राजनीतिक विद्वान् उन्हें संविधान के प्रमुख प्रिय नेता मानते हैं यद्यपि केशवानंद भारती का राजनीति से कोई ताल्लुक नहीं रखते थे Kesavananda bharti case ने संविधान में जो परिवर्तन लाया वो नजरंदाज करने लायक नहीं था
ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि 19 वर्ष की आयु केशवानंद भारती जी सन्यासी हो गए और अपने मठ के गुरु ने केशवानंद भारती जी को उनके आदर्शो व विचारों को देखते हुए 20 वर्ष की आयु से मठ का संपूर्ण भार सौंप दिया और वह ब्रम्ह के अद्भुत आकाश में लीन हो गए तव से केशवानंद भारती जी मठ का कार्यभार संभालते आए थे
केशवानंद भारती मामला - Kesavananda bharti case
1. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य
वर्ष 1970 में केशवानंद भारती के सामने एक समस्या आन पड़ी मठ के आसपास मठ की पड़ी सैकड़ों बीघा जमीन सरकारी कब्जे में आ गई क्योंकि सरकार के द्वारा भूमि सुधार किया जा रहा था वह सरकारी नीति को भारती जी ने अनुचित बताकर एक वकील की सलाह पर केरल सरकार के विरुद्ध हाई कोर्ट में अपनी अर्जी दाखिल की किंतु भारती जी का प्रयास सफल ना हो सका अतः केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में अन्ततः केशवानंद भर्ती केस हार गए
2.सुप्रीम कोर्ट में केशवानंद भारती मामला - Kesavananda bharti case in supreme court
केशवानंद भारती जी ने यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी और अपने पक्ष की सफाई में अनुच्छेद 26 धार्मिक स्वतंत्रता के प्रमुख अधिकार के हनन होने का हवाला दिया और उन्होंने संपत्ति के अधिकार को हटाने पर भी संसद के खिलाफ प्रश्नचिन्ह उठाएं धारा केसवानंद भारती केस से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह समस्या आन पड़ी कि क्या संसद मौलिक अधिकारों में भी अपनी मर्जी के बल पर बदलाव कर सकती है तभी इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने उनके गोरखनाथ मामले से भी बड़ी 13 सदस्यीय बेंच बनाई तब बेंच का निर्णय 6:7 आया अर्थात मात्र एक मत से पूरा मामला पलट गया अतः निर्णय यह निकला की संसद संविधान व मौलिक अधिकारों में संशोधित या मौलिक अधिकारों में बदलाव तभी कर सकती है जब संविधान की मूल भावना और मौलिक अधिकारों की मूल भावना अप्रभावित रहे इतिहासकार का यह शुभ दिन 24 अप्रैल 1973 था
अपने क्या सीखा - इस Kesavananda bharti case के मामले ने यह सिद्ध कर दिया कि संविधान हमेशा भारत में सर्वोपरि रहेगा आप यह बात तो जानते ही होंगे कि ब्रिटैन में संसद सर्वोपरि है किंतु भारत में संविधान सर्वोपरि है केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में केशवानंद भारती जी भले ही अपना केस हार गए किंतु हार कर भी वे जीत गए है लोगों के लिए बाजीगर बन गए तभी तो कहा जाता है कि केशवानंद भारती जिन्होंने अपनी बाजी हार कर भी लोगों के लिए बाजीगर बन गए
हमने क्या सीखा हमने केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य के इस केस के मामले को पढ़कर यह सीखा कि सांसद चाहे तो संविधान की मूल भावना को ठेस पहुचाये विना मौलिक अधिकारों में व् संविधान में नया संशोधन कर सकती है किंतु यह एक सामान्य संशोधन नहीं होगा इसकी प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है आशा करते हैं यह आर्टिकल आपको पसंद आए और आपको इसके पश्चात कहीं भी अपना टाइम वेस्ट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी धन्यवाद
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