वैक्सीन या टीका क्या है | DNA Vaccine क्या होती है
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वैक्सीन या टीका क्या है - Vaccine kya hai
सामान्य वैक्सीन बनाने की तकनिकी में हम ध्यान रखते है की जिस रोग की वैक्सीन बनानी होती है उसी रोग के रोगाणु मरी या अधमरी अवस्था में उपयोग में लाते है
वैक्सीन बनाने के लिए औधोगिक स्तर पर तथा अनकूल तापमान पर जीवाणुओं का सञ्जनन किया जाता है यदि जीवाणुओं को मरना जरूरी हो तो तापमान बड़ा दिया जाता है गरम जल द्वारा लगभग 60 डिग्री तापमान पर जीवाणुओं को निर्जीव अथवा अधमरा कर दिया जाता है
वैक्सीन या टीका क्या है | DNA Vaccine in hindi |
फिनोल का 1% विलयन एंटीसेफ्टिक होता है यदि फिनोल की मात्रा किसी विलयन में इससे अधिक बड़ा दी जाये तो विलयन एंटीबायोटिक की भाती कार्य करने लगता है
वैक्सीन बनाने में यदि जीवाणुओं की सक्रियता कम करने के लिए वैज्ञानिको द्वारा फिनोल का भी उपयोग करते है यहाँ फिनोल एंटीसेफ्टिक की तरह नहीं अपितु रोगाणुनाशक की तरह उपयोग में लाया जाता है
आवश्यक परिछणो द्वारा वैक्सीन की शुद्धता, साइड इफ़ेक्ट , तथा वैक्सीन की प्रतिरक्षण शक्ति का पता लगाया जाता है
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है की जब किसी वैक्सीन को किसी व्यक्ति के लगाया जाता है तो उसी रोग के रोगाणु शरीर में जाते ही हमारी WBC द्वारा भारी संख्या में एंटीबाडी ( उन रोगाणुओं से लड़ने की छमता बनाना ) बनाई जाती है चूँकि रोगाणु मृत अवस्था में होते है इसलिए शरीर को प्रभवित नहीं करते है और शरीर में उस रोग के रोगाणु के प्रति एंटीबाडी भी तैयार हो जाती है
अब भविष्य में उसी रोग के रोगाणु प्रभावी अवस्था में शरीर पर आक्रमण करते है तो शरीर को प्रभवित ही नहीं कर पाते क्योकि शरीर में पहले से ही एंटीबाडी बनी हुई है
कोई भी वैक्सीन की सफलता के लिए यह जरूरी होता है की वैक्सीन के नकारात्मक प्रभाव को भी पता कर लेना क्योकि वैक्सीन में जो रोगाणु प्रयुक्त किये गए है वह साइड इफ़ेक्ट या अन्य कोई नकारात्मक प्रभाव दर्शा सकते है
इसलिए वैक्सिन औसधी निर्माण अधिनियम के नियमो का पालन किया जाता है कड़ी मेहनत के बाद किसी रोग की वैक्सीन हाथ लग पाती है
क्या है डीएनए वैक्सीन (DNA vaccine) ?
सोचो यदि ऐसी वैक्सीन की कल्पना की जाये जो लगभग 100 % साइड इफ़ेक्ट फ्री हो तो बात ही अलग होगी
जी हाँ वह हो सकती है DNA वैक्सीन ! वैज्ञानिको ने ऐसी ही वैक्सीन की कल्पना की जिसमे वह काफी हद तक सफल हो रहे है
DNA vaccine में सीधे उस रोग के रोगाणुओं का प्रयोग नहीं करते बल्कि उनसे प्राप्त विशेष जिनो का प्रयोग शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने के लिए किया जाता है
किसी रोगाणु के विरुद्ध डीएनए टीके बनाने के पहले उस जीवाणु के जीन की पहचान की जाती है जो एंटीजन की भाती कार्य करता है
ये जीन जीवाणु से प्राप्त प्लाज्मिड नामक DNA की छोटी श्रखला में समाहित कर दिए जाते है
इस प्रकार तैयार प्लाज्मिड ही डीएनए टीका कहलाता है इससे अनचाहे संक्रमण की आशंका नहीं रहती क्योकि इनके प्रयोग से जीवाणु से उत्पन्न करने बाले भिवन्न अन्य जीनो(~ गुणों ) का अभाव होता है